अब बिमला भी आगे पढ़ेगी

समय हरदम नई संभावनाओं को जन्म देता है। हर संभावना एक खिड़की है जिससे बाहरी दुनिया में झाँका जा सकता है, वहाँ जाया जा सकता है। ऐसी ही एक संभावना है मुक्त व दूरस्थ शिक्षा।

सन 2004 की बात है। असकोट आराकोट यात्रा के दौरान बधियाकोट पहुँचे। यह गाँव वर्तमान में बागेश्वर जनपद का हिस्सा है। यहीं मुलाक़ात हुई थी बिमला से जो बारहवीं तक पढ़ी थी। आगे पढ़ने की उसमें जबर्दस्त ललक दिखी थी तब। लेकिन पारिवारिक स्थितियों और संसाधनों की कमी के कारण उसका आगे को पढ़ने का सपना अधूरा रह गया था। वो कह रही थी कि परिवार के लिए कमजोर आर्थिक हालत के चलते कस्बों में किराये का मकान लेकर उसे पढ़ाना संभव नहीं और फिर लड़की को अकेले कैसे दूर भेजा जाय यह माँ-बाप के लिए दूसरी दुविधा थी। हम चाह कर भी उसके लिए कुछ कर न सके। आज भी न जाने हमारे गाँवों में कितनी बिमलाएँ हैं जिनके लिए उच्च शिक्षा एक सपना ही बना हुआ है। बेटों को तो जैसे तैसे कॉलेज भेज दिया जाता है पर उत्तराखंड के ग्रामीण इलाकों की लड़कियाँ आज भी उच्च शिक्षा के सपने देखने से वंचित हैं।

बदलते परिदॄश्य में आज जहाँ गाँव गाँव तक इंटरनेट की पहुँच हो चुकी है, विद्यार्थी और अभिभावक दोनों के पास पढ़ाई को लेकर कई विकल्प उभर कर सामने आए हैं। बावजूद इसके सही जानकारियों का अभाव आज भी उतना ही बना हुआ है। ‘मुक्त एवं दूरस्थ शिक्षा’प्रणाली को लेकर फैली भ्रांतियाँ विद्यार्थी और अभिभावक दोनों को अलग से संशय में डाले रखती हैं। यह लेख उन भ्रांतियों को मिटा कर उपयोगी जानकारी साझा करने का एक प्रयास है।

इस समय हमारे देश में शिक्षा को लेकर दो तरह की प्रणालियाँ प्रचलित। आम तौर पर हम जिस प्रणाली से वाकिफ हैं वह ‘परंपरागत’ प्रणाली कहलाती है। शिक्षा की इस व्यवस्था में हमें नियमित रूप से निश्चित समय के लिए विद्यालय या विश्वविद्यालय जाना होता है। शिक्षा की दूसरी प्रणाली है ‘मुक्त एवं दूरस्थ शिक्षाप्रणाली।

शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने दोनों में से किसी भी पद्धति से ली गई उपाधि को समान बताते हुए समतुल्य मानने के आदेश जारी किए हुये हैं। इस प्रणाली की विशेषता यह है कि इसमे विद्यार्थी को नियमित रूप से विद्यालय या विश्वविद्यालय आने की बाध्यता नहीं है। ‘लर्निंग ह्वाइल अर्निंग’ याने रोजगार के साथ-साथ पढ़ाई के विचार पर आधारित यह शिक्षा प्रणाली कई तरह की स्वायत्ता तो देती ही है, संभावनाओं के बहुत से दरवाजे भी खोलती है।

हालांकि परंपरागत शिक्षा प्रणाली के बीच पले-बढ़े समाज के लिए इस नई प्रणाली को एक समय तक मानसिक तौर पर स्वीकारना थोड़ा असहजता भरा रहा। यही कारण है कि सर्व सुलभ और सस्ती होने के बावजूद इस प्रणाली को दोयम दर्जे की निगाह से देखे जाने की प्रवॄत्ति बनी रही। पर अब यह प्रणाली तेजी से लोकप्रिय हो रही है।   

क्या है मुक्त एवं दूरस्थ शिक्षा की खासियत ?

भारत में आज उच्च शिक्षा ग्रहण करने वाले युवाओं में से लगभग 11 प्रतिशत मुक्त एवं दूरस्थ शिक्षा प्रणाली से अध्ययन कर रहे हैं। इस समय दुनियाँ के सबसे बड़े विश्वविद्यालय में गिने जाने वाले इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय (इग्नू) में अकेले भारत समेत विश्व के तीस लाख से ज्यादा विद्यार्थी अध्ययन कर रहे हैं। आखिर ऐसा क्यों?

दरअसल परंपरागत प्रणाली के उलट जहाँ ‘मुक्त शिक्षा’ व्यक्ति को अपने पसंदीदा विषय चुनने का अधिकार देती है वहीं ‘दूरस्थ शिक्षा’ की अवधारणा उसे किसी भी स्थान से शिक्षा ग्रहण करने कि सुविधा प्रदान करती है। इस प्रणाली की खूबसूरती यह है कि यह व्यक्ति को अपने विषय को पढ़ने और उसकी गहरी समझ विकसित करने के लिए कई प्रकार की शिक्षण पद्धतियों जिसे ‘ब्लेंडेड मोड’ भी कहा जा सकता है, अपनाती है। विद्यार्थी इस पद्धति के अंतर्गत उपलब्ध कराई गई पाठ्य सामग्री से तो पढ़ते ही है, वह अपने अध्यापक की रेडियो वार्ता, टेलीविजन कार्यक्रम, और यू ट्यूब में उपलब्ध कराये गए व्याख्यानों को जब चाहे जहाँ चाहे सुन सकते है। यही नहीं वह नियमित रूप से अध्ययन केन्द्रों में की जाने वाली फ़ेस-टू-फ़ेस काउंसिलिंग (व्यक्तिगत तौर पर मिल कर दिशानिर्देश) के द्वारा कक्षा-शिक्षण का आनंद लेते हुए विषय से जुड़ी अपनी शंकाओं का समाधान भी कर सकते हैं। इस तरह विद्यार्थी बिना किसी अतिरिक्त दबाव के अपने विषय को एकाग्रता और गंभीरता से समझ सकते है।

मुक्त व दूरस्थ शिक्षा के छात्र छात्राएँ परीक्षा देते हुए

समय-समय पर दिये जाने वाले एसाइनमेंट और उनका मूल्यांकन विद्यार्थी की विषय संबंधी गहरी समझ विकसित करने के साथ-साथ पाठ्यक्रम की गुणवत्ता बनाए रखने में सहायक होते हैं। इसलिए आज परंपरागत प्रणाली की तुलना में मुक्त एवं दूरस्थ शिक्षा ज्यादा उपयोगी और सार्थक सिद्ध होती जा रही है।

नई शिक्षा नीति भी ऑनलाइन शिक्षा को बढ़ावा दिए जाने पर काफी ज़ोर दे रही है। युवाओं को कई सारे विकल्प उपलब्ध कराये जाने की कोशिशें चल रही हैं ताकि वे अपने पसंदीदा विषयों को पढ़ने के साथ-साथ व्यावसायिक और कौशल विकास (स्किल डेवलपमेंट) से जुड़े पाठ्यक्रमों को अपनी पढ़ाई का हिस्सा बनाएँ ताकि जब वे पढ़ाई पूरी कर बाहर आयें कुछ न कुछ हुनर सीख कर आयें ताकि उन्हें रोजगार के बेहतर विकल्प उपलब्ध हो सकें। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने नियमों में बदलाव कर विद्यार्थियों को एक और सुविधा दी है। अब कोई भी व्यक्ति एक बार में साथ-साथ परंपरागत और मुक्त एवं दूरस्थ शिक्षा प्रणाली में प्रवेश लेकर दो अलग-अलग उपाधियाँ प्राप्त कर सकता है।

उत्तराखंड में मुक्त एवं दूरस्थ शिक्षा के अवसर

उत्तराखंड की भौगोलिक परिस्थितियों और आधारभूत ढांचे को देखते हुए और युवाओं की उच्च शिक्षा के प्रति ललक को ध्यान में रखते हुए राज्य सरकार द्वारा 2005 में उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय की स्थापना की गई। यह राज्य का मुक्त और दूरस्थ शिक्षा प्रदान करने वाला अकेला सरकारी विश्वविद्यालय है। इसके अतिरिक्त इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय (इग्नू) ने भी उत्तराखंड में अपने अध्ययन केंद्र स्थापित किए हैं।

अपनी पंद्रह वर्ष की यात्रा में आज उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय में अलग अलग विषयों में लगभग 80,000  विद्यार्थी अध्ययन कर रहे हैं। उच्च शिक्षा को दूरस्थ इलाकों तक पहुँचाने और विद्यार्थियों की सुविधा के लिए उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय ने राज्य के राजकीय महाविद्यालयों, अनुदानित अशासकीय महाविद्यालयों और कुछ एक निजी महाविद्यालयों में 119 अध्ययन केंद्र स्थापित किए हैं। महिलाओं, कमजोर तबकों को आगे बढ़ाने के उद्देश्य से हल्द्वानी, मुनस्यारी, सहिया में विशेष अध्ययन केंद्र की स्थापना की गई है।

विश्वविद्यालय इन अध्ययन केन्द्रों के माध्यम से कला, विज्ञान, वाणिज्य, प्रबंध, शिक्षा, कॄषि और ग्रामीण स्वास्थ्य एवं योग जैसे क्षेत्रों में 12 स्नातक, 33 स्नातकोत्तर, 09 स्नातकोत्तर डिप्लोमा, 15 डिप्लोमा और 26 सर्टिफिकेट पाठ्यक्रम संचालित करता हैं। इसके अतिरिक्त बी.एससी. (एकल विषय) कार्यक्रम को तीन वर्षों में पूर्ण किये जाने की सुविधा भी विश्वविद्यालय में उपलब्ध है।

यही नहीं विश्वविद्यालय मुख्यालय में पीएचडी (नियमित कार्यक्रम) पाठ्यक्रम का संचालन भी किया जाता है। न्यूनतम आवश्यक अर्हता रखने वाला कोई भी इच्छुक व्यक्ति उपरोक्त उपाधियों के लिए घर बैठे विश्वविद्यालय में प्रवेश ले सकता है। हालांकि पीएचडी, बीएड और एमबीए सरीखे पेशेवर पाठ्यक्रमों में परीक्षा के माध्यम से प्रवेश दिया जाता है।

कैसे लें प्रवेश?

विश्वविद्यालय के विभिन्न पाठ्यक्रमों में प्रवेश लेने की प्रक्रिया को बहुत आसान बनाया गया है। वर्ष में दो बार प्रवेश लेने की सुविधा दी गई है। कोई भी व्यक्ति स्वयं अपने मोबाइल या कम्प्यूटर से विश्वविद्यालय की वेबसाइट www.uou.ac.in में जा कर आनलाइन प्रवेश ले सकता है। यदि उसके पास यह सुविधा उपलब्ध नहीं है तो अपने आसपास विश्वविद्यालय द्वारा बनाए गए अध्ययन केंद्र में जा कर भी प्रवेश लिया जा सकता है। यह कार्य किसी भी डिजिटल सेवा केंद्र या साइबर कैफै की माध्यम से भी किया जा सकता है।

आनलाइन प्रवेश प्रक्रिया आरम्भ करने से पहले विद्यार्थी के लिए यह उचित होगा कि वह सबसे पहले वेबसाइट में उपलब्ध निःशुल्क विवरणिका को धैर्यपूर्वक पढ़ कर प्रवेश संबंधी नियम, पाठ्यक्रम, फीस आदि की जानकारी हासिल कर ले। जिससे उसे पाठ्यक्रम चुनने में आसानी हो।  

प्रवेश प्रक्रिया आरम्भ करने से पहले आवश्यक दस्तावेज़ जैसे हाईस्कूल और इंटरमीडिएट के प्रमाणपत्र, आरक्षित श्रेणी संबंधी प्रमाणपत्र की डिजिटल प्रति (स्कैन) के साथ-साथ आधार संख्या, ईमेल और मोबाइल नंबर और फोटो तैयार रख लिया जाय ताकि यथास्थान उक्त सूचनाएँ भरने के साथ दस्तावेजों को अपलोड किया जा सके। शुल्क भुगतान के लिए अपना या किसी परिचित का एटीएम इस्तेमाल करें, या किसी साइबर कैफै /डिजिटल सेवा केंद्र की मदद लें।

यह ध्यान रखना अत्यंत आवश्यक है कि बिना आधार संख्या, ईमेल और मोबाइल नंबर की जानकारी दिये आनलाइन प्रवेश नहीं लिया जा सकता है। इसी तरह एक मोबाइल नंबर का प्रयोग केवल एक ही व्यक्ति के प्रवेश के लिए किया जा सकता है। विश्वविद्यालय द्वारा विद्यार्थी को उक्त पंजीकॄत नंबर पर एसएमएस से समय समय पर सूचनाएँ भेजी जाती है। अतः आवश्यक है कि वही नंबर दिया जाय जो स्थायी हो और विद्यार्थी उसका नियमित उपयोग करता हो।

आनलाइन प्रवेश लेते समय विद्यार्थी अपना पाठ्यक्रम, अध्ययन केंद्र और यहाँ तक कि परीक्षा केंद्र भी स्वयं चुन सकते हैं। यह जानना आवश्यक है कि विश्वविद्यालय द्वारा प्रवेश विवरणिका में दिये गए पाठ्यक्रम और परीक्षा शुल्क के अतिरिक्त किसी भी अन्य प्रकार का शुल्क नहीं लिया जाता है।

यदि प्रवेश लेने के बाद किसी कारणवश विद्यार्थी अपना अध्ययन केंद्र परिवर्तित करना चाहते हों तो वह प्रवेश के 30 दिन के भीतर वेबसाइट में दी गई सुविधा द्वारा ओटीपी के माध्यम से स्वतः ऑनलाइन अध्ययन केंद्र परिवर्तित कर सकते हैं। हाँ, निर्धारित अवधि के बाद अध्ययन केंद्र परिवर्तित करने पर अतिरिक्त शुल्क के साथ साथ संबन्धित अध्ययन केंद्र से अनापत्ति लेनी आवश्यक हो जाती है।

एक बार प्रवेश मिल जाने के बाद विद्यार्थी को पाठ्य सामग्री उसके अध्ययन केंद्र के माध्यम से उपलब्ध करवाई जाती है। वह चाहें तो पाठ्य सामग्री की डिजिटल प्रति विश्वविद्यालय की वेबसाइट से डाउनलोड भी कर सकते हैं। मुद्रित पाठ्य सामग्री प्रेषण संबंधी जानकारी के साथ ही समय-समय पर काउंसिलिंग, कार्यशालाओं के आयोजन, एसाइनमेंट तैयार किए जाने और परीक्षा संबंधी सूचनाये दिये गए मोबाइल फोन पर एसएमएस के साथ-साथ ईमेल से भेजी जाती हैं। इसलिए सही फोन नंबर और ईमेल दिया जाना अत्यंत आवश्यक है। सुविधा के लिए ये सारी जानकारियाँ विश्वविद्यालय की वेबसाइट में भी उपलब्ध रहती हैं। विद्यार्थी वेबसाइट में दिये गए स्टूडेंट कॉर्नर लिंक में जाकर सरलता से अपने नामांकन संख्या के द्वारा पाठ्य सामग्री के साथ-साथ परीक्षा परिणाम की स्थिति और पाठ्यक्रम से जुड़ी अन्य जानकारी ले सकते हैं।

टैक्नोलॉजी के कारण शिक्षा के क्षेत्र में तेजी से बदलाव आ रहे हैं। ऑनलाइन शिक्षा में लगातार नए-नए विकल्प सामने आ रहे हैं। सामान्य पढ़ाई में मदद की जरूरत हो या प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी, सामान्य भाषा सीखने की इच्छा हो या फिर कौशल बढ़ाने और प्रमाणीकरण करने की जरूरत या उच्च शिक्षा पाने का मन, युवाओं के पास आज मुक्त और ऑनलाइन शिक्षा के अनेक विकल्प हैं। उम्मीद है कि आने वाले समय में मुक्त और दूरस्थ शिक्षा तथा ऑनलाइन शिक्षा गाँवों में रह रहे उन लड़कियों-लड़कों के सपनों को पंख लगा सकेगी जिनके लिए आज भी उच्च शिक्षा एक सपना है।

गिरिजा पांडे
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